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प्रमुख उद्देश्य

‘साबरमती-गुरूकुलम्’ का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य के जीवन के चारित्र्य निर्माण के साथ-साथ सर्वतोमुखी विकास करने का है और उसके लिए उसे भारत के प्राचीन ऋषि-महर्षियों द्वारा प्रस्थापित पुरुषों की ७२ कलाओं और महिलाओं की ६४ कलाओं पर आधारित प्रशिक्षण दिया जाता है । उसके प्रभाव से बालक-बालिकाओं के जीवन का उचित विकास होता है । इस प्रकार की शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी ‘ज्ञानवान्‌’, ‘गुणवान्‌’, ‘सक्षम’, ‘बुद्धिमान्‌’ और ‘चारित्र्यवान्‌’ बनता है ।

- आधुनिक शिक्षा प्रणाली और पद्धति के सभी हानिकारक, बुरे और नकारात्मक पहलुओं से नई पीढ़ी को सुरक्षित बनाना है ।

- २०० वर्ष पूर्वे अंग्रेजो द्वारा नष्ट की गई प्राचीन गुरुकुल - शिक्षा प्रणाली का पुन:उदय करना हमारा लक्ष्य है ।

- वर्तमान शिक्षा पद्धति का भारतीयकरण और अध्यात्मकरण इस विद्याधाम का मुख्य उद्देश्य है ।

- भारतीय आर्य संस्कृति के मूल्य और प्रबंध के अनुसार विद्यार्थिओं का बौद्धिक, शारीरिक, वैचारिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक इत्यादि बहुमुखी विकास हो सके ऐसी अध्ययन-अध्यापन प्रणाली का संरक्षण, विकास, संवृद्धि एवं विनियोग ये विद्याधाम के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है ।

- अध्ययन-अध्यापन कार्य में गुरु की प्रमुखता और समाज में गुरुओं के गौरव को पुनः संस्थापित करना है ।

- पुरुषों के लिये ७२ और महिलाओं के लिए ६४ कलाओं की शिक्षण पद्धति के माध्यम से धीरता, वीरता, विद्वत्ता, प्रज्ञाशालिता, चारित्र्यशीलता, राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम, स्वनिर्भरता, साहसिकता, पराक्रमिता, नीडरता, स्वास्थ्य, उदारता, परोपकारिता, जीवदया, विनय, विवेक, व्यवहार-कुशलता, औचित्य, शीघ्र प्रत्युत्तर-क्षमता, शीघ्र निर्णय-शक्ति, नेतृत्व-क्षमता, दूरदर्शिता एवं श्रेष्ठ, समर्थ व्यक्तित्व धारण करने वाले नर-नारी का निर्माण करना हमारा लक्ष्य है ।