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गुरुकुलम् क्यों?

          बच्चें - युवा बड़ी उम्मीद के साथ स्कूल जाते है की वे पढ़ लिखकर, डीग्री लेकर अच्छे इन्सान बनेंगे । परिवार, समाज व प्रकृति के पूरक बनेंगे, खुद भी सुख से जीयेंगे व सब के सुख का माध्यम भी बनेंगे । परन्तु हो क्या रहा है आज? आयु के महत्त्वपूर्ण १६ वर्ष और मेहनत की कमाई के करीब ८ से १० लाख रुपये पढाई में लगाने के बाद परिणाम निराशापूर्ण । १० हजार की भी नौकरी नहीं मिलती, क्यों? उसको केवल डिग्री मिलती है, योग्यता नहीं की अपना व अपने परिवार का पोषण सम्मान के साथ कर सके । १६ वर्ष जीवन के लगाये, मेहनत के लाखों रुपयें डिग्री पर खर्च किए फिर भी उसकी कीमत क्या? क्यों नहीं है कीमत? क्या यह मजाक नहीं युवा शक्ति के साथ? क्या यह छल नहीं मेहनतकश अभिभावकों के साथ? जिन्होंने रात - दिन मेहनत करके बच्चों की पढाई के लिए साधन जुटाए । उससे भी आगे बढ़कर क्या ये राष्ट्रीय अपराध नहीं आज की शिक्षा व्यवस्था का? कि किसी की जिंदगी के १६ वर्ष एक आशा में लगवा दिए और मिला कुछ नहीं । पढ़ लिखकर वह न परिवार का, न गाँव का, न समाज का और ना ही प्रकृति का । बल्कि बोझ बन गया सब के ऊपर । क्योंकि कुछ भी करने लायक नहीं रहता, यह कहानी है करोड़ों युवाओं की ।

          अबतक यह माना जाता था की अनपढ़ और कम पढ़े लोग ही ज्यादा अपराध की ओर मुड़ते है । आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है की आजकल पढ़े-लिखे लोगों का अपराध पर जैसे एकाधिकार हो गया है । फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाले लोग माफियागीरों में सामिल हो रहे है । स्कूल का पढा-लिखा तबका हर तरह का अपराध करने में सबसे आगे है । हिन्दुस्तान का अंगूठाछाप आदमी आज भी ईमानदारी से जीना चाहता है । जितना मिल जाये उसीमें गुजर-बसर करने को तैयार है ।

          पश्चिमी अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति बच्चों को बुराईयों के खर-पतवारों से मुक्त करने और उन्हें विकसित करने के बजाय उनमें बाहर से मिथ्याज्ञान भरने तथा उन्हें जबरन ही कुछ का कुछ बनाने और नौकरी दिलाने अथवा पैसे कमाने की मशीन बनाने का प्रयास करती हुई उनके मन-मस्तिस्क में अवांछित भौतिक-भोगों की भूख जागृत कर देती है । इस बावत इस पध्धति में तरह-तरह की निरर्थक डिग्रियां बांटी-बेचीं जाती है । उन डीग्रीधारियों में से अधिकतर को नौकरी मिलती नहीं है । जिन्हें मिलती भी है, वे और ज्यादा कमाने की लालच में भ्रष्टाचारी एवं दुराचारी बन जाते है । जब की असफल रहें लोग बेरोजगार-कुंठा-अवसाद,अपराध, आत्महत्या का शिकार हो मानव जीवन के स्वाभाविक उद्देश्य से भटक जाते है ।

          आज पश्चिमी कुरीति-कुनीति-असभ्यता-अपसंस्कृति इस कदर लोगों पर हावी हो गई है की उसकी चकाचौंध में चौंधियाये हुए हमारे ही लोगों द्वारा पश्चिम को ही हमारी नियति मान ली गई है । किन्तु इस थोपी हुई नियति से बीतते समय के साथ लोगों का मोहभंग होने लगा, तो देशभर में कई लोगों द्वारा यह सोचा-समझा और महसूस किया जाने लगा की परायी भाषा, परायी संस्कृति और परायी शिक्षा-पद्धति से अपना कल्याण कतई नहीं हो सकता । इसलिए वैकल्पिक - गुरुकुल शिक्षा पद्धति की आवश्यकता लोगों को अनिवार्य लगने लगी है । इसके फल स्वरुप देशभर में गुरुकुल शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित करने का हमारा भगीरथ प्रयास है ।

          मैकाले शिक्षा पद्धति के सामने गुरुकुल में पढ़ें हुए छात्र ७२ विद्या-कलाएँ सिखने के बाद जीवन का सर्वतोमुखी विकास पा कर इस देश के लिए एक प्रखर राष्ट्र-भक्त और संस्कृति-भक्त बनकर बाहर आयेंगे । गुरुकुल की शिक्षा के द्वारा छात्र 'ज्ञानी', 'गुणीयल', 'सक्षम', 'नीतिमान', 'बुध्धिमान' और 'चारित्रवान' बनता है । और वह आजीविका के लिए सिखी हुइ कलाओं में से किसी भी कला में निपुण होकर अपना जीवन-निर्वाह कर सकता है ।

क्या आप चाहते हैं? की आपका बालक....

- माता-पिता का परम भक्त बने

- धर्म के प्रति श्रद्धावान और संस्कारी बने

- संस्कृति और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बने

- परिवार का कुलदीपक बने

- आदर्श मित्र और नेतृत्वकर्ता बने

- धनवान बनने के साथ-साथ गुणवान और चरित्रवान बने

....तो आज ही अपने बालक को गुरुकुल शिक्षा पद्धति में अध्ययन कराने का निर्णय करके निश्चिंत हो जाए ।

आपका बालक देश का भविष्य है और बालक का भविष्य आपकी जिम्मेदारी है ।

इसलिए धर्म-रक्षा, संस्कृति-रक्षा और राष्ट्र-रक्षा के श्रेष्ठ धर्मयज्ञतुल्य "साबरमती-गुरुकुलम्" में अपने बच्चों को उज्जवल भविष्य के लिए पढाएं ।